जीवन-यात्रा
मैं लहरों पे चलता जाऊँ, मैं प्रवाह अनुकूल बनाऊँ।
विकसित कमलों के प्रांगण में,
मधुपों के लोलुप गुंजन में,
मानसरोवर के जल-तल में,
सहमा-सहमा तिरता जाऊँ। मैं प्रवाह अनुकूल बनाऊँ।
खेतों-खलिहानों-मधुवन में,
धरती-तारों और गगन में,
मानव बनने की लगन में,
गिरता-पड़ता-उठता जाऊँ। मैं प्रवाह अनुकूल बनाऊँ।
हर घाटी के ओर-छोर में,
हर पर्वत के पोर-पोर में,
किरण-राशि की डोर-डोर में,
रमता-थमता-चलता जाऊँ। मैं प्रवाह अनुकूल बनाऊँ।
सर-सरिता-सागर-निर्झर में,
पनघट-जमघट नगर-डगर में,
बाग-बगीचों और टगर में,
भरमाता-इतराता जाऊँ। मैं प्रवाह अनुकूल बनाऊँ।
जीवन-संगर के सागर में,
स्नेह प्रभामय रत्नाकर में,
दिव्य-ज्योतिमय करुणाकर में,
डूबता-सा उतराता जाऊँ। मैं प्रवाह अनुकूल बनाऊँ।
मैं लहरों पे चलता जाऊँ, मैं प्रवाह अनुकूल बनाऊँ।
Copyright©Dr.Ashwinikumar Shukla
Sundar,atisundar;satat pravah banaye rakhen.
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्द्धन के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं