सोमवार, 7 सितंबर 2009

अनुभव

जाने कितने लोग मिले, जाने कितने रोज मिले

कुछ अच्छे, कुछ मन के सच्चे, लेकिन कुछ मदहोश मिले।।

हुआ राग जो करता है होता है वह गीत नहीं;

धुआँ उड़ा जो करता है वह सावन का मीत नहीं;

चुआ नेह जो करता है तो जाता वह रीत नहीं;

युवा भाव साथीपन का क्षण में जाता बीत नहीं।

शब्दों के संसार मिले, चित्रों के बाजार मिले।

कुछ अच्छे, कुछ बेहद सच्चे, लेकिन कुछ बेकार मिले।। जाने कितने.....।।

बहते पानी के रुकने से जगती का उद्धार नहीं;

रमते योगी के जमने से लोकों का उपकार नहीं;

उड़ते मेघों के थमने से बारिश और मल्हार नहीं;

झड़ते पत्तों के बचने से धरती का श्रृंगार नहीं।

सपनों के जो गाँव मिले, हरियाली के ठाँव मिले।

कुछ अच्छे, कुछ अनुपम सच्चे, लेकिन कुछ बेथाह मिले।। जाने कितने.....।।

नियति नटी की प्रीति करे सपनों को साकार नहीं;

कुमति कपट की नीति धरे सुफलों के आकार नहीं;

मैले मन मक्कारी से बड़ा कोई व्यभिचार नहीं;

धोखेबाजी नफरत से पा सकता कोई प्यार नहीं;

बगुले कितने श्वेत मिले, एक नहीं समवेत मिले।

कुछ अच्छे, कुछ बरबस सच्चे, लेकिन कुछ रंगरेज मिले।। जाने कितने.....।।


Copyright©Dr.Ashwinikumar Shukla

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