चिरंतननव
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शनिवार, 1 अगस्त 2009
यूँ तो जगह-जगह की बात होती है
कुछ दिन की तो कुछ रात की होती है
बातों का तो कहना ही क्या ?
बारिश तो कभी धूप की बात होती है |
Copyright©Dr.Ashwinikumar Shukla
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